बढ़ाओ कदम लो चलाओ हाथ, आता है सूरज तो जाती है रात, किरणों ने झांका है होगा प्रभात। प्रख्यात राष्ट्रीय कवि और गांधीवादी विचारक भवानी प्रसाद मिश्र की इन प्रेरणादायी पंक्तियों का अनुसरण भले ही लोग कर रहे हो परन्तु राष्ट्रीय कवि पंडित भवानी प्रसाद मिश्र स्वयं अपनी ही जन्मस्थली में गुमनाम होकर रह गए हैं। पंडित भवानी प्रसाद का जन्म मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम जिले की डोलरिया तहसील में नर्मदा नदी के किनारे बसे गांव टिगरिया के खरखेड़ी में हुआ था।
नर्मदा घाट के किनारों पर ही राष्ट्रकवि भवानी प्रसाद मिश्र की जन्मस्थली थी जो की आज जंगल जैसी पड़ी हुई है। इन्ही नर्मदा घाट पर बैठकर भवानी प्रसाद मिश्र ने अपनी कई कालजयी रचनाओं को शब्द दिए। गांव का पटेघाट और वहां बने मंदिरों का तो इससे भी पुराना ज्ञात इतिहास रहा है। भवानी प्रसाद मिश्र को 1972 में उनकी कृति बुनी हुई रस्सी पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 1981-82 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का साहित्यकार सम्मान दिया गया तथा 1983 में उन्हें मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया।
ग्रामीण बताते है की पूर्व में कई नेता मंत्री यहाँ आये और उन्होंने भवानी दादा के नाम पर बड़ी बड़ी घोषणा की पर वे सभी सिर्फ घोषणा बनकर ही रह गई धरातल पर आज तक कुछ भी नहीं हुआ। पूर्व सरपंच संतोष राठौर ने बताया की उनके नाम से द्वार बनवाने के प्रस्ताव लिए, लाइब्रेरी, मांगलिक भवन बनवाने की भी मांग की गई परन्तु शासन प्रशासन ने किसी प्रकार का सहयोग नहीं किया।
वर्तमान सरपंच प्रतिनधि राहुलराज गौर ने बताया की भवानी दादा की जन्मस्थली की आज दुर्दशा हो रही है दादा ने हमारे गाँव, तहसील, जिला ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश का नाम रोशन किया पर उनके नाम पर आज तक गाँव में कुछ भी नहीं हो पाया हमारी मांग है की राष्ट्रकवि भवानी प्रसाद मिश्र के नाम पर यहाँ स्मारक, लाइब्रेरी सहित गाँव के नाम को बदलकर पंडित भवानी प्रसाद मिश्र के नाम पर किया जाए। जिससे की आने वाली पीड़ी राष्ट्रकवि भवानी प्रसाद मिश्रा के बारे में जान सके।