नीम के पेड़ के नीचे भीलट बाबा ने छह माह के लिए की भविष्यवाणी: दर्शन करने उमड़े हजारो श्रृद्धालु
सिवनी मालवा नगर से मात्र आठ किलोमीटर दूर नर्मदापुरम राज्य मार्ग पर स्थित प्रसिद्ध स्थल भीलटदेव में वर्षो से चौदस से भीलटदेव का मेला लगता है। सोमवार को चौदस पर मेला भी लगा। मेले में दूर दूर से श्रद्वालु यहां आते है और अपनी मनोकामना मानते है तथा पूर्ण होने पर यहां आकर श्रृद्धा से शीश झुकाते है। यहां पर लोग संतान के लिए भी अपनी झोली फैलाते है। और संतान प्राप्त होने पर उनका मुण्डन व तुलादान भी इसी स्थान पर होता है। सोमवार को चौदस पर शाम को 5 बजे मंदिर के पडि़हार दर्वेश्वर गवली के शरीर में भीलट देव बाबा आए, उन्होने नीर ली और आगामी छह माह तक के लिए सबसे बड़ी भविष्यवाणी भी की।
ये की भविष्यवाणी
मंदिर के पुजारी गोविंद दास ने बताया कि बाबा ने इस बार भविष्यवाणी करते हुए बताया की आदमी के उपर बीमारियों का प्रकोप अधिक रहेगा। कई प्रकार की बीमारियाँ आती रहेंगी। खंड खंड में वर्षा होगी कही कही पानी बहुत गिरेगा, कही कम गिरेगा यदि धर्म पूण्य करेंगे तो बाबा सबकी सहायता करेंगे।
बाबा साल में दो बार करते हैं भविष्यवाणी, यहां हर मनोकामना होती है पूरी
भमेड़ीदेव नामक ग्राम में लगने वाले इस मेले का संचालन जनपद पंचायत सिवनी मालवा द्वारा किया जाता है। इस वर्ष यह मेला 22 अप्रैल सोमवार से प्रारम्भ होकर अप्रेल वैशाख कृष्ण पक्षीय दशमी तक चलेगा। उल्लेखनीय है कि भीलटदेव के इसी मंदिर में पडि़हार बाबा चौदस को नीर लेकर साल में दो बार छह माह की भविष्यवाणी करते है। यहां साल में दो बार भविष्यवाणी की जाती है।
सबकी होती है अलग-अलग श्रद्धा
कई लोग भीलटदेव को नाग अवतार तो कई योगी संत का अवतार मानते है। यही नहीं भारत में कहीं भी रहने वाले हरिजन, आदिवासी, गौंड, कोरकू सभी देवी देवताओं में सबसे अधिक भीलटदेव को मानते है। प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा बताया जाता है कि पान लगने (सांप काटा) वाला व्यक्ति जब अपनी मनोती पूरी करने भीलट बाबा के मंदिर पर चढ़ता है तो जिस तरह सांप चढ़ता है उसी प्रकार लहराते हुए जमीन पर रैंगते चढ़ता है। भीलटदेव के इस स्थान पर मेले के प्रथम दिन चैत्र सुदी चौदस को भीलटदेव पडि़हार के शरीर पर आकर नीर लेते हैं और आगामी छह माह की भष्यिवाणी करते हैं। इनकी भविष्य वाणी में हवा, पानी, व्यापार, फसल रोग आदि सभी बात बताई जाती है।
दस वर्ष की उम्र में त्यागा था घर
बाबा भीलटदेव के विषय में किवदंती है कि बाबा की माता का नाम मेंदाबाई और पिता का नाम रेवजी गोली था। जो रोलगांव के गोली आदिवासी परिवार से सबंधित थे। रोलगांव अब हरदा जिले में स्थित है। बचपन से ही काफी कुसाग्र बुद्वि, और भगवान शंकर पार्वती की पूजा लीन रहने वाले भीलट बाबा 10 वर्ष की उम्र में अपना घर त्याग कर बांगला (बंगाल) पहुंच गए। जहां उन्होंने अपने इष्ट देव भवनान शंकर पार्वती की घोर तपस्या की। भीलट देव यहां धर्म व प्रेम प्रचार करते इसी सब से बंगाल में उनकी ख्याति लोगों में काफी बढ़़ गई जिससे चिढ़कर एक तांत्रिक ने भीलटदेव पर जादूटोना कर मारना चाहा। लेकिन जादू करने वाले परास्त हुए और उस देश के राजा ने अपनी कन्या राजलमती का विवाह भीलटदेव के साथ करा दिया। कुछ समय बाद भीलटदेव बांग्ला से पचमढ़ी स्थित बड़ा महादेव की शरण में आ गए। पचमढ़ी आने के पश्चात् बाबा भीलटदेव ने जिस जिस स्थान पर रात्रि विश्राम किया उस उस स्थान पर आज भी मेला लगता है। इसमें रोलगांव, रूदनखेड़ी, छिदगांव संगम, भीलटदेव सिवनी मालवा, भदभदा होशंगाबाद, छिन्दापानी, पचमढ़ी आदि स्थान शामिल हैं।