शीतला सप्तमी पर्व के अवसर पर सिवनी मालवा नगर के एकमात्र शीतला माता मंदिर में सुबह 4 बजे से ही भक्तों का तांता लगा रहा। बड़ी संख्या में भक्तों ने मंदिर पहुंच कर माता से सुख, शांति और समृद्धि की कामना की। होली त्यौहार के बाद सातवें व आठवें दिन शीतला सप्तमी व अष्टमी पर्व के रूप में मनाया जाता है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी देवल मोहल्ला स्थित माता शीतला के मंदिर में सुबह से भक्त माता के दर्शन के लिए पहुंचने लगे थे। इस दिन माता शीतला की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व माना जाता है।
माता शीतला की पूजा-अर्चना के लिए पहुंची महिलाओं ने बताया कि वे हर वर्ष अपने परिवार के साथ शीतला सप्तमी पर माता के दर्शन के लिए आती हैं। इस पर्व का विशेष महत्व है और इसे विवाहित महिलाओं के द्वारा मनाया जाता है। इसे बसेड़ा पर्व के नाम से भी जाना जाता है। इसमें दिन एक दिन पहले बनाए गए ठंडे भोजन का सेवन किया जाता है। माता शीतला को इस दिन पूड़ी, गुलगुला, नीम की डाल, नारियल, हल्दी, अक्षत व दक्षिणा चढ़ाई जाती है। शीतला सप्तमी के दिन माता की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। इसकी पूजा माता शीतला के मंदिरों में की जाती है। इस दिन माता शीतला की पूजा करने से माता के प्रकोप से भी बचा जा सकता है। साथ ही जिन लोगों को माता आई हो उन्हें भी इस दिन मंदिर में लाकर धूप दिलाई जाती है।
मंदिर के पुजारी ने बताया कि माता शीतला शीतलता प्रदान करने वाली हैं और इसी कारण होली त्यौहार के बाद शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का विशेष महत्व है। माता को दही, घी, नारियल, सिंगार की सामग्री, पूड़ी आदि चढ़ाई जाती है और माता से शांति व समृद्धि की कामना की जाती है। इस दौरान बड़ी संख्या में महिलाओं ने मंदिर पहुंचकर माता की पूजा अर्चना की।
घरों में नहीं जलाते चुल्हा
जैन समाज, माहेश्वरी, ब्राह्मण समाज व राजस्थानी समाज में इस पर्व का विशेष महत्व है। इस पर्व को मनाने वालों के द्वारा आज के दिन घरों में चुल्हा नहीं जलाया जाता है। साथ ही ताजा भोजन नहीं बनाने की प्रथा है। इस दिन एक दिन पूर्व में बने भोजन का ही सेवन किया जाता है। माता शीतला के पूजन से परिवार को सुख, समृद्धि, शांति प्राप्त होती है।